Doctor G Review: साथी कलाकारों के कमाल से निखरी ‘डॉक्टर जी’, शेफाली, शीबा और आयशा ने संभाली आयुष्मान की फिल्म
‘डॉक्टर जी’ आयुष्मान खुराना के तयशुदा फॉर्मूले की एक और फिल्म है जिसमें वह स्त्री रोग विशेषज्ञ बने हैं लेकिन ये फिल्म उससे कहीं आगे की बात करती है, और ये बात दर्शकों को जितनी जल्दी पता चल जाए, फिल्म की कामयाबी के लिए उतना ही बेहतर होगा।
विस्तार
सिनेमाघरों में लगातार तीन फ्लॉप फिल्मों ‘शुभ मंगल ज्यादा सावधान’, ‘चंडीगढ़ करे आशिकी’ और ‘अनेक’ की हैट्रिक लगा चुके आयुष्मान खुराना का सोशल कॉमेडी का फॉर्मूला इस बार फिल्म ‘डॉक्टर जी’ में कसौटी पर है। ‘जी’ का मतलब यहां सम्मान सूचक जी से नहीं है बल्कि ये स्त्री रोग विशेषज्ञ यानी अंग्रेजी के गाइनेकोलॉजिस्ट का पहला अक्षर जी है। जितनी मेहनत मैंने अभी आपको ‘जी’ का मतलब समझाने में की है, उतनी ही मेहनत अगर आप ये फिल्म देखते समय कर ले गए तो खत्म होते होते फिल्म आपको बढ़िया लगेगी। फिल्म देखते समय थोड़ा सब्र जरूरी है और ये भी समझना जरूरी है कि ये एक कॉमेडी फिल्म के कैप्सूल में खिलाई गई एक और वर्जित विषय की ऐसी गोली है। तो शुरू करते हैं बातें अनुभूति कश्यप की बनाई पहली फिल्म ‘डॉक्टर जी’ की। और, सबसे पहले बात अनुभूति की। वह अनुराग कश्यप और अभिनव कश्यप की बहन हैं। सिम्बॉयोसिस से एमबीए करके आई हैं। नीरज घेवन की इतनी पक्की दोस्त हैं कि फिल्म में मेडिकल कॉलेज के एक दृश्य में उन्होंने नीरज का नाम टेबल पर गोद दिया है।
निर्देशक की पहली फिल्म हो तो फिल्म समीक्षकों के शो के आखिर में उनसे मुलाकात लाजिमी है। वैसे फिल्म ‘डॉक्टर जी’ में अनुभूति ने हिंदी में अपना परिचय ‘निर्देशिका’ के रूप मे दिया है। फिल्म खत्म होते ही वह मिलीं और उन्हें जब ये बताया गया कि हिंदी में जिसे निर्देशिका कहते हैं, अंग्रेजी में उसका नाम डायरेक्टरी होता है तो बात शायद उनके लिए गुगली हो गई। फिल्म की कहानी लिखने वाले सौरभ और विशाल की तारीफ की तो उनकी प्रतिक्रिया कुछ यूं थी, ‘हां, उन्होंने लिखा था कुछ कुछ लेकिन बाद में मैंने और सुमित ने उस पर काफी काम किया और उसके बाद जो फाइनल ड्राफ्ट बना, उस पर ये फिल्म बनी है।’ गौर किया जाए कि ये अनुभूति की पहली फिल्म है। दो दिन पहले 32 साल से फिल्में बना रहे निर्देशक इंद्र कुमार से मुलाकात हुई थी तो उन्होंने अपनी नई फिल्म ‘थैंक गॉड’ की कहानी लिखने वालों आकाश और मधुर की तारीफों के पुल बांध दिए थे। खैर, मुद्दे पर लौटते हैं और 35 करोड़ की इस फिल्म में 10 करोड़ रुपये फीस लेने वाले आयुष्मान खुराना की बात करते हैं।
अनुभूति ने जो बात कही, वह ध्यान रखने लायक है क्योंकि अब जो फिल्म ‘डॉक्टर जी’ दर्शक देख रहे हैं, वह उनकी और सुमित की फिल्म है। मूल लेखकों ने क्या लिखा था, शायद ही कभी पता चले। और, इस फिल्म की सबसे कमजोर कड़ी इसकी पटकथा ही है। फिल्म अगर तीन हिस्सों की सीरीज के रूप में दिखाई जाती तो शायद ज्यादा असरदार होती। यहां फिल्म हर चालीस मिनट पर अपना तेवर, कलेवर सब बदल लेती है। वर्जित विषयों में एक आम हिंदुस्तानी परिवार के लड़के को फिट करने के आयुष्मान फॉर्मूले में इस बार मामला एक एमबीबीएस लड़के का एमडी में स्त्री रोग विशेषज्ञ की सीट मिलने पर परेशान होना है। जो कुछ यहां ये लड़का करता है, उससे चिढ़ होती है और यही यहां आयुष्मान के अभिनय की जीत है। हालांकि, उनका अभिनय ऐसा है कि पता नहीं चलता कि फिल्म कौन सी चल रही है? हर फिल्म में उनके चेहरे के भाव अब दर्शकों को पहले से पता होते हैं।
फिल्म का दूसरा अध्याय शीबा चड्ढा के नाम है। वह यहां डॉक्टरी की पढ़ाई कर रहे ऐसे लड़के की मां के किरदार में हैं जिसे उनका बेटा अपने उस ‘बलिदान’ के बारे में चार बातें सुनाता है जो उसने अपनी अकेले रहने वाली मां के साथ रहने के लिए किए हैं। मां ने उसके लिए क्या क्या किया, उसे याद भी नहीं है। फिल्म अगर सिर्फ इसी एक विषय पर बनती तो कमाल फिल्म हो सकती थी। एक प्रौढ़ मां जिसे अकेलापन काट रहा है। वह कभी यूट्यूब पर वीडियो बनाती है। कभी टिंडर पर जाती है। और, इस उम्र में भी अपने लिए एक साथी खोज लेती है। नए जमाने का बेटा जिसे धर्म कर्म में दिलचस्पी नहीं है। लेकिन, जिसे महिलाओं का डॉक्टर होने में दिक्कत है, उसे अपनी मां का अपने खास दोस्त के साथ रेस्तरां में डिनर करने आना हजम नहीं होता।
और, अब फिल्म का तीसरा अध्याय। इस पर भी एक फिल्म अलग से बन सकती है और ये अध्याय है चिकित्सा के पेशे में नैतिक मूल्यों की पहरेदारी का। कितने लोगों को पता होगा कि जब कोई पुरुष स्त्री रोग विशेषज्ञ किसी महिला का परीक्षण करे तो उस समय एक महिला सहकर्मी का वहां उपस्थित रहना अनिवार्य है। फिल्म का ये हिस्सा स्त्री रोग विभाग की अध्यक्ष बनीं शेफाली शाह के नाम है। अपने किरदारों के अनुरूप गरिमा और वैसा ही तेज चेहरे पर ला सकने वाली शेफाली शाह इस दौर की बेहतरीन अभिनेत्री के रूप में खुद को बार बार साबित कर रही हैं। आयुष्मान खुराना जब भी उनके साथ एक फ्रेम में होते हैं, किरदार के हिसाब से भी और अभिनय के हिसाब से भी लाचार नजर आते हैं। फिल्म का ये अध्याय ही फिल्म की असल मजबूती है और फिल्म देखने में व्यतीत हुए समय को सार्थक बनाती है।
धारावाहिक ‘ये उन दिनों की बात है’ की किशोरी और उससे पहले फिल्म ‘दम लगा के हइशा’ की बाल कलाकार रहीं आयशा ने फिल्म ‘डॉक्टर जी’ 18 साल से पहले की उम्र में ही अपने से दूनी उम्र के शख्स के प्रेम में पड़ने वाली किशोरी का दमदार किरदार निभाया है। जिस संयत अभिनय के साथ आयशा ने ये चरित्र जिया है, वह भी काबिले तारीफ है। और, फिल्म की हीरोइन हैं रकुल प्रीत सिंह। उनका किरदार यहां हिंदी सिनेमा की परंपरागत नायिका का नहीं है। यहां वह फिल्म के नायक से सिर्फ दोस्ती चाहती है, निकाह उसे किसी और से करना है। नई पीढ़ी के बीच चाहत और दोस्ती का ये धागा भी फिल्म में ठीक से विकसित नहीं हो पाया है। रकुल प्रीत अपनी हर फिल्म में लगातार ये कोशिश करती दिखती हैं कि वह काबिल अदाकारा हैं लेकिन उनको अपनी पूरी अभिनय क्षमता दिखाने का खुला मैदान मिलना अब भी बाकी है।
खराब पैकेजिंग का खामियाजा
फिल्म ‘डॉक्टर जी’ की कमजोर कड़ियों में इसका संगीत भी शामिल है। अमित त्रिवेदी ने अनुराग कश्यप की बहन की पहली फिल्म के नाते इसमें अपनी तरफ से पूरा जोर लगाने की कोशिश की है, लेकिन फिल्म का एक भी गाना फिल्म देखने के बाद अपनी छाप बनाए रखने में विफल रहता है। उससे बेहतर फिल्म का पार्श्वसंगीत है। अस्पतालों में घूमती एक कहानी को इसके सिनेमैटोग्राफर ईशित नारायण ने अपने कैमरे से दर्शनीय बनाने में सफलता पाई है। फिल्म के इंटरवल से पहले ढीली होने का दोष वैसे तो फिल्म के वीडियो संपादक पर मढ़ा जा सकता है लेकिन यहां ये याद रखना जरूरी है कि फिल्म में क्या रखना है और क्या छोड़ना है, इसका फैसला फिल्म के निर्देशक का होता है। फिल्म का रिलीज से पहले कहीं कोई प्रचार नहीं हुआ है। लोगों को सिर्फ यही पता है कि ये आयुष्मान खुराना के तयशुदा फॉर्मूले की एक और फिल्म है जिसमें वह स्त्री रोग विशेषज्ञ बने हैं लेकिन ये फिल्म उससे कहीं आगे की बात करती है, और ये बात दर्शकों को जितनी जल्दी पता चल जाए, फिल्म की कामयाबी के लिए उतना ही बेहतर होगा।
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